कैसी बारिश हुई
रात भर
मन भीगता रहा चुपचाप
जिस्म बिस्तर पर था
और ख्वाईशें
देर रात तक टहलती रही
सड़कों पर
शुष्क अधरों पर
कुछ शब्द
कब से रखे थे अनकहे
बारिश में भीगे तो
आँखों में आ छुपे
अब जो मिलना
तो पढ़ना
नींद लौटा कर
भीगती यादों को
जो जगह दी
तो रात भर रोती
रही मिलके गले
पहर-पहर
गीली हो कर
रात सरक गई
कुछ लम्हे क्यों
मगर सूखे ही
रह गए
कैसी बारिश हुई
रात भर
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