Wednesday, November 20, 2013

तुम्हें याद नहीं करता हूँ


  
ये सोचते हुए कि मेरी आँखों से न गिर जाएँ
वो ओस में भीगे हुए दिन
मैं तुम्हें याद नहीं करता हूँ
तब भी नहीं जब मौसम कुछ खुशनुमा होकर
मुझे फूलों की महक में लिपटी हुई
बारिश की फुहारें भेज देता है
में उन हसीन दस्तकों को भी लौटा देता हूँ
जो तुम्हारा नाम लेकर
मेरी अलसाई आँखों को जगाने के लिए
सूरज की पहली किरणों की
सिफारिशों का ख़त लेकर खड़ी हो जाती हैं
सुबह सुबह मेरे सिरहाने
मैं झील की खामोशी और समुन्दर की
लहरों का जिक्र
खुद से कभी नहीं करता
मैं पत्तों की सरसराहटों और हवाओं में
गूंजते सन्नाटे से खुद को अलग रखता हूँ
मैं रात को सोने से पहले
चाँद की आँखों में गिरा देता हूँ पर्दा
और नींद न भी आये में रात को
सुनता नहीं हूँ
न ही कुछ बुनता हूँ
मैं उन ओस से भीगे हुए उन दिनों को
परखना चाहता हूँ
गिरने से रोक देना चाहता हूँ
आखिरी सांस से ठीक पहले तक

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