कैसी बारिश हुई
रात भर
मन भीगता रहा चुपचाप
जिस्म बिस्तर पर था
और ख्वाईशें
देर रात तक टहलती रही
सड़कों पर
शुष्क अधरों पर
कुछ शब्द
कब से रखे थे अनकहे
बारिश में भीगे तो
आँखों में आ छुपे
अब जो मिलना
तो पढ़ना
नींद लौटा कर
भीगती यादों को
जो जगह दी
तो रात भर रोती
रही मिलके गले
पहर-पहर
गीली हो कर
रात सरक गई
कुछ लम्हे क्यों
मगर सूखे ही
रह गए
कैसी बारिश हुई
रात भर

Tuesday, June 14, 2011
Wednesday, June 1, 2011
कल रात
कल रात चाँद नशे में था
बादलों के आगोश में
जो लड़खड़ा के गिरा
तो सुबह तक उसका पता न था
कल रात एक तारा
मदहोश हुआ
जमीं को चूमने निकला
और टूट कर बिखर गया
कल रात हवा होश में न थी
पहाड़ों से वो उतरी
दबे पाँव
और दरिया में डूब गई
कल रात एक जुगनू
बहक गया
बुझा के रोशनी
अँधेरे की गोद में सो गया
कल रात रजनीगन्धा
के फूल बेहोश पड़े रहे
और खुशबू
किसी सन्नाटे में मर गई
कल रात मैंने भी
जी भर कर पिए आँसू
आज सुबह
पत्तों पर शबनम की बूंदें देखी
तो नशा टूटा
बादलों के आगोश में
जो लड़खड़ा के गिरा
तो सुबह तक उसका पता न था
कल रात एक तारा
मदहोश हुआ
जमीं को चूमने निकला
और टूट कर बिखर गया
कल रात हवा होश में न थी
पहाड़ों से वो उतरी
दबे पाँव
और दरिया में डूब गई
कल रात एक जुगनू
बहक गया
बुझा के रोशनी
अँधेरे की गोद में सो गया
कल रात रजनीगन्धा
के फूल बेहोश पड़े रहे
और खुशबू
किसी सन्नाटे में मर गई
कल रात मैंने भी
जी भर कर पिए आँसू
आज सुबह
पत्तों पर शबनम की बूंदें देखी
तो नशा टूटा
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