Wednesday, June 1, 2011

कल रात

कल रात चाँद नशे में था
बादलों के आगोश में
जो लड़खड़ा के गिरा
तो सुबह तक उसका पता न था

कल रात एक तारा
मदहोश हुआ
जमीं को चूमने निकला
और टूट कर बिखर गया

कल रात हवा होश में न थी
पहाड़ों से वो उतरी
दबे पाँव
और दरिया में डूब गई

कल रात एक जुगनू
बहक गया
बुझा के रोशनी
अँधेरे की गोद में सो गया

कल रात रजनीगन्धा
के फूल बेहोश पड़े रहे
और खुशबू
किसी सन्नाटे में मर गई

कल रात मैंने भी
जी भर कर पिए आँसू
आज सुबह
पत्तों पर शबनम की बूंदें देखी
तो नशा टूटा

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