Friday, April 8, 2011

वजूद


वो लम्हे
जो आंसुओं में लिपटे
मिले थे राहों में
जिंदगी ने उठा लिए
और फिर
चल पड़ी है
पलकों में सजाकर
एक तलाश मगर
गुमसुम सी बैठी है
इन आँखों में
जैसे कोई छूट गया है


इन आंसुओं
को किसी ने नहीं माँगा
हाँ
कुछ ख्वाब थे
आसमां को दे दिए
नींदें थी रातों को
सौंप दी
और चाँद ने मांगी
मुस्कराहट तो इनकार
न कर सके
फिर भी
क्यों लगता है मुझको
जैसे कोई रूठ गया है


अब तक नहीं
लौटा है साया भी मेरा
और तेरा नाम भी
गुम है इन
होंठों से निकलकर
मेरे ही आगोश में
लिपट कर रोता है
ये सूना-सूना
वजूद मेरा
जैसे कोई लूट गया है

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