Friday, February 17, 2012

उस दिन

कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
हम रोज की तरह मिले थे और हँसे थे
तुम विदा गीत सुना रही थी
और मेरे होंठों पर एक शोक गीत था
हम अनजाने में ही कल को
गुनगुना बैठे थे

कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
बहुत दिनों के बाद
हम याद कर रहे थे
अपनी पहली मुलाक़ात को
हमने गुजरे हुए लम्हों को
उधेड़ कर तह की
बहुत सी मुस्कुराहटें
और कुछ आंसू भी
अपने-अपने सफ़र के लिए

कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
रोज की तरह सूरज डूब रहा था
और तुम अनायास ही पूछ बैठी थी
कभी देखा है ऐसा सूर्यास्त ?
फिर
आँखें बंद कर पीने लगे थे हम
अपने-अपने हिस्से का डूबता हुआ वो सूरज
इस बात से अनभिज्ञ कि
हमारे हाथ छूट गए हैं

No comments:

Post a Comment