कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
हम रोज की तरह मिले थे और हँसे थे
तुम विदा गीत सुना रही थी
और मेरे होंठों पर एक शोक गीत था
हम अनजाने में ही कल को
गुनगुना बैठे थे
कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
बहुत दिनों के बाद
हम याद कर रहे थे
अपनी पहली मुलाक़ात को
हमने गुजरे हुए लम्हों को
उधेड़ कर तह की
बहुत सी मुस्कुराहटें
और कुछ आंसू भी
अपने-अपने सफ़र के लिए
कुछ तय नहीं था
पर उस दिन
रोज की तरह सूरज डूब रहा था
और तुम अनायास ही पूछ बैठी थी
कभी देखा है ऐसा सूर्यास्त ?
फिर
आँखें बंद कर पीने लगे थे हम
अपने-अपने हिस्से का डूबता हुआ वो सूरज
इस बात से अनभिज्ञ कि
हमारे हाथ छूट गए हैं
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