Friday, February 17, 2012

मैं और तुम

मैं और तुम
एक हुआ करते थे
मैं समझती थी और तुम
कहा करते थे
हम साथ-साथ चलते थे
मेरे कदम थोड़े छोटे थे और तुम्हारे बड़े
तुम आगे निकल गए
तुम्हें लगा होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ
तुम्हारे ठीक पीछे
तुम बिना पीछे देखे बोलते रहे कि तुम मेरे साथ हो
बस कुछ दूर तक ही तुम सुनाई पड़े
तुमने मेरा हांफना नहीं सुना
तुम दूर निकल गए
और अब मैं खड़ी हूँ उस आखिरी कदम पर
जहाँ तुम्हें आखिरी बार सुना था
मैं खड़ी हूँ
मेरी परछाई का कद
धीरे-धीरे मुझे छोटा करने लगा है
भीतर कुछ टूटता सा है और
परछाई गहरा कर थोड़ी और लम्बी हो जाती है
तुमने मेरा हाथ नहीं थामा था
पर मैंने तुम्हें कहीं भीतर तक
कस के थामा था
पर वो दोपहर तक की ही बात थी
तुम्हारे वादों की शाम होने को आई है

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