Friday, April 8, 2011

एक अहसास

आज फिर से
दिल ने रख दिया
आँखों के सामने
तुम्हारा धुंधला सा चेहरा
कुछ सच्चे आँसू
आँखों से विदा हुए
और वो एक झूठ
खड़ा रहा बेनकाब
कुछ देर यूँ ही
और फिर एक ख़ामोशी
चुपचाप उतर गई
आँखों में मेरी

आज फिर से
दिल ने मेरे होंठों पर
रख दी वही मधुर छुवन
तुम्हारा नाम.....
एक मुस्कराहट सच्ची सी
उभरी और निकल पड़ी
तुम्हारी तलाश में....
एक झूठ से हार
लौटी तो लाश बनकर...
और फिर दब गई
आहों में मेरी


आज फिर से
दिल ने सुनाई कानों को मेरे
तुम्हारी वो जानी-पहचानी आहट
एक अहसास तुम्हारा सच्चा सा
मेरे इर्द-गिर्द लगा मंडराने
फिर एक हँसी गूंजी
दिल ने कहा ये भी
झूठ है, दिल्लगी है
पर मैं....
जानता हूँ यही सच है
तुम एक अहसास
बनकर घुली हुई हो
अब भी साँसों में मेरी

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