Friday, April 8, 2011

एक मौन स्पर्श तुम्हारा

एक मौन स्पर्श तुम्हारा
मुझ में ही रहता है हरदम
मेरी साँसों के संग बहता
रूह से लिपटा
थोड़ा शर्मिला सा,
थोड़ा चन्चल सा
और
जो मुझे यकीन दिलाता है
कि तुम हो मुझ में ही


एक मौन स्पर्श तुम्हारा
मेरी आँखों में है झांकता
एक मीठी सी छूअन लिए
जो रखता है हिसाब
मेरी आँखों में उभरी बूंदों का
और जो अक्सर रह जाता है
ठगा सा
जब मेरे होंठ मुस्कुराते हैं
और आँख भर आती हैं

एक मौन स्पर्श तुम्हारा
मेरे सिरहाने रहता है अक्सर
मेरे माथे और मेरे बालों में
बिखेरता शीतल लहरों को
फिर एक लोरी मेरे भीतर है गूँजती
और मुझे यकीन होने लगता है
कि तुम सचमुच मुझ में हो

एक मौन स्पर्श तुम्हारा
उंगली थामे ले जाता है मुझे बचपन में
जब मिट्टी में उगते थे सपने
और आसमान लगता था नीचे
जब लहरों से नहीं लगता था डर
और परछाईयों साथ नहीं चलती थी
तुम्हारा मौन स्पर्श मुझे
ले जाता है आईने के सामने

एक मौन स्पर्श तुम्हारा
कुछ नहीं कहता
न चाँद की बातें, न तारों की कहानी
पर
मेरे कदम जानते हैं
कि दूर् तक तुमने अपनी हथेलियाँ
बिछा दी हैं….

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