Friday, April 8, 2011

एक परिंदा

एक परिंदा
हांफता लौटा है
जगह जगह जिसने चूमा था आसमां
घोंसले में जगह कम है
पर अपनी तो है
यही कह कर इस सन्नाटे ने
मुझे दी है पनाह
और उड़ेल दिया है मेरे भीतर
मौन सिर्फ मौन
दरवाजे भीतर से खुलते हैं
तुम आना निशब्द
ऐसे ही इसी मौन में लिपटे
एक ठण्डी कब्र
तुम्हारे इन्तजार में खोदी है
पर हाँ,
अब की बार
यह मत कहना कि तुम आसमां हो
इस ख़ामोशी में
बहुत से पंख गिरे पड़े हैं
खूब समझते हैं
आसमां के छलावों को

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