Friday, April 8, 2011

अनकहे शब्द ये

अनकहे शब्द ये
बिखरे हैं कागज पर
अबूझ पहेली बनकर
तुम तक पहुँचते
तो शायद मोती होते
अब आँसू हैं

अनकहे शब्द ये
होंठों तक आकर
लड़खड़ा जाते थे
तुम तक पहुँचते
तो शायद फूल होते
अब राख हैं

अनकहे शब्द ये
तैरते थे आँखों में
अजानी भाषा में
तुम जान पाते
तो शायद दर्पण होते
अब कंकड़ हैं

अनकहे शब्द ये
गूँजते रहे दिल में
ओढ़ कर खामोशी
तुम सुन पाते
तो शायद गीत होते
अब रुदन हैं

अनकहे शब्द ये
अंधेरों में रहे भटकते
बुझे दीये बनकर
तुम तक उड़ पाते
तो शायद ख्वाब होते
अब जले पंख हैं

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